Lekhika Ranchi

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आचार्य चतुसेन शास्त्री--वैशाली की नगरबधू-


82 . दीहदन्त का अड्डा : वैशाली की नगरवधू

कुण्डनी ने कार्पास -कंचुक पहन कुसुम्भ - नमतक धारण किया , नेत्रों को अपांग से शृंगारित किया । स्तनों पर कौशेय पट्ट बांधा, स्वर्ण- वलय भुजा में पहने , अलक्तरागरंजित चरणों में झंकारयुक्त नूपुर धारण किए, माथे पर जड़ाऊ बन्धुल लगाया । फिर उसने हंसकर कहा- “ ठीक हुआ नाउन ? ”

“ अभी नहीं , ” नाउन ने हंसकर कहा। फिर उसने उठकर बहुत - सा लोध्ररेणु, उसके मुख पर पोतकर मुख को मैनसिल से लांछित कर दिया , स्याही से चिबुक और कपोल पर तिल बनाया और हाथों में रंगीन हस्तिदन्त के चूड़े पहनाए। फिर लम्बे कायबन्धन कमर में लटका चोलपट्ट पहनाया और तब कहा

“ अब हआ ! ”

“ तो अब तू भी साज सज । ”कुण्डनी ने उसका भी अपना ही - सा शृंगार किया । नाउन ने हंसकर कहा - “ समज्या - अभिनय करना होगा सखि , कर सकोगी ? ”

“ क्यों नहीं , परन्तु नई - नई देहात से जो आई हूं , अल्हड़ बछेड़ी हूं। - कुण्डनी ने नाउन की चुटकी भरते हुए कहा। फिर बोली, “ चल , अब देखें , नागर के कैसे रंग हैं ! ”

सोम ने एक नटखट नागर का उल्वण वेश धारण किया था । उसने शत - बल्लिक धारण किया था और कण्ठ में मंजरीक पहनी थी । कमर में कलावुक मुरज बांधा था । वह लाल उपानह पहन झट तैयार हो गया ।

तीनों जब राजमार्ग पर पहुंचे तो अलिन्द सूने थे, गवाक्षों के कपाट बन्द थे , वीथियों में जहां - तहां राजदीप जल रहे थे, परन्तु राजपथ का अन्धकार उनसे दूर नहीं हो रहा था ।

दीहदन्त का अड्डा श्रावस्ती के जनाकीर्ण अंतरालय में एक गन्दी और तंग गली में था । वहां उस समय मिट्टी के दीप जल रहे थे। मद्य की दुर्गन्ध आ रही थी । मद्यप , द्यूतकार , चोर, गलाकट तथा निम्न श्रेणी के विट, विदूषक और लंपट वहां बैठ मद्य पीते हुए भांति भांति के गपोड़े हांक रहे थे। बहुत - से लोग अपशब्द बक रहे थे । बहुत - से स्त्रियों के क्रय विक्रय की बात कर रहे थे। एक जुआरी ने चार दम्म में अपनी स्त्री को एक मित्र के पास गिरवी रख दिया था । अब वह वहां बैठा लोगों से अपने उस मित्र का सिर फोड़ देने का संकल्प भी प्रकट कर रहा था और गौडीय मद्य के बूंट भी गले से उतारता जा रहा था । एक दुबली - पतली नवयुवती मदपायियों को चषक भर - भर कर देती जा रही थी । मदोन्मत्त ग्राहक उसे छेड़ - छेड़कर गन्दी बातें बक रहे थे। लोग सुनकर हंस रहे थे।

तीनों ने वहां पहुंचकर एक अंधकारपूर्ण स्थान में खड़े होकर परामर्श किया । पहले नाउन अड्डे में गई। दीहदंत उसे देखते ही प्रसन्न हो गया । हंसते हुए उसने कहा

“ अरी, तेरी जय रहे रानी! आज इतने दिन बाद किधर ? ”

नाउन ने होठों पर उंगली रख संकेत से उसे अपने पास बुलाया और कान में धीरे से कहा

“ एक चिड़िया फांस लाई हूं। अड्डे में समज्या - अभिनय करेगी, ग्राहकों को मद्य देगी । अवसर पाकर बेच लेना । बीस दम्म से कम न मिलेंगे ?

“ अरे वाह, यह तो बहुत बढ़िया बात है । वह क्या कोई अगारिका है ? ”

“ नहीं, नटनी है। ”

“ कोई हानि नहीं, किन्तु सुन्दरी है ? ”

“ देख ले , सुन्दरी क्या ऐसी - वैसी है ! ”

“ तो उसे पिछले द्वार से भीतर ला , वहां आलोक में देखें । ”

“ पर कहे देती हूं , दस दम्म लूंगी । एक भी कम नहीं। ”

“ पर पहले माल तो दिखा ? ”

“ हां माल देखो, खूब खरा है। ”

नाउन बाहर आई और कुण्डनी को भीतर ले गई । कुण्डनी का रूप देख दीहदन्त की आंखों में धुन्ध छा गई ।

उसने हाथ मलते हुए कहा - “ हन्दजे , तू क्या समज्या - अभिनय कर सकती है ? ”

कुण्डनी ने वीड़ा - लास्य दिखाकर और तनिक मुस्कराकर सिर हिला दिया ।

“ तब अच्छा है । तो नाउन , पांच दम्म ले , देख ले । अभी नई है , बहुत खिलाना पिलाना -सिखाना पड़ेगा। ”

“ नहीं रे, सिखाना नहीं , सब जानती है, देख । ” उसने जाकर कुण्डनी को संकेत किया ।

कुण्डनी ने जो नृत्य -लास्य किया और रूप का उभार दिखाया तो उपस्थित चोर और हलाकू लम्पट वाह -वाह करने लगे ।

जिस जुआरी ने अपनी औरत को गिरवी रख दिया था , उसने हाथ के दम्म उछालकर कहा - “ कह रे दीह, कितने में बेचेगा इस दासी को ? ”

उसके साथ वाले पुरुष ने उसे धकेलते हुए बांह से होठों का मद्य पोंछते हुए कहा

“ यह दासी मैं लूंगा । मुझे सौ दम्म को भी भारी नहीं। ”

इसी समय सोम नागरिक लम्पट का वेश धारण किए अड्डे में आ एक आसन पर बैठ गया । मद्य ढालनेवाली लड़की ने सुराभाण्ड और चषक उसके आगे धर दिए । सोम ने थोड़े- से स्वर्णखण्ड दीहदन्त के आगे फेंककर कहा - “ दे सबको मद्य । ”सब मद्यप प्रसन्न हो उठे और उसके चारों ओर आ जुटे । दीहदन्त ने उसे प्रसन्न करने को आसन्दी - आसिक्त सोपधान पर उसे बैठाया । नाउन ने कहा - “ यही वह है दन्त ? ”

“ वह कौन ? ”

“ राजपुत्र को जिसने उड़ाया है। देखते तो हो , कितना स्वर्ण है इसके पास। ” दीहदन्त ने हंसकर कहा - “ यह नहीं है, वह है। ”

उसने दोनों जुआरियों की ओर संकेत किया । नाउन ने उचककर उन्हें देखा और कुण्डनी को संकेत किया । कुण्डनी ने लीला-विलास करके उन्हें सम्मोहित कर दिया । दोनों झगड़ा बन्द कर हंसने और मद्य पीने लगे ।

सोम नाउन का संकेत पा उसके पास आ बैठा । उसने कहा

“ कह मित्र, दासी कैसी है ? ”

“ क्या कहने हैं , मित्र ! परन्तु इसे मैं मोल लूंगा। ”

“ किन्तु मित्र, यह सहज नहीं है। इस दुष्ट दीह ने इसे राजकुमार विदूडभ को भेंट करने का संकल्प किया है !

हाथ का मद्यपात्र रिक्त कर उसने हंसते हुए कहा - “ तो जाय यह कोसल दुर्ग में । ” सोम के कान खड़े हो गए। उसने कहा

“ कोसल- दुर्ग में इसे भेजना चाहिए मित्र ! कोई कौशल कर , वह उसी नटी के सम्बन्ध में दासी से बात कर रहा है । ले पी मित्र ! ”सोम ने मद्यपात्र उसके आगे करके कहा ।

“ बन्धुल मेरा मित्र है। वह सबका सेनापति है, मेरा नहीं। मेरा मित्र है। ”उसने हंसते हुए कहा ।

“ तो मित्र , फिर बाधा क्या है ? ”बन्धुल सेनापति यदि कोसल- दुर्ग में है, तो इस दीह को वहीं लाद दो । फिर दासी तेरी है, एक पण भी खर्च नहीं होगा । ”

“ मैं आज ही मित्र बन्धुल से कहूंगा मित्र! रहस्य की बात है-बंधुल मेरा चिरबाधित है । ”

“ और कुमार विदूडभ ?

“ ओह, उसकी क्या बात ? वह बन्दी है ? ”

“ क्या सच ? यह क्या कहते हो मित्र ? ”

“ चुप , कहने - योग्य नहीं । वह उसी कोसल- दुर्ग में बन्दी है। ”

“ नहीं मित्र, तुझे किसी ने भ्रमित किया है । ”

“ तू मूर्ख है मित्र! मैंने उसे स्वयं दुर्ग के बन्दीगृह में पहुंचाया है। अरे, जलगर्भ में बन्दी- घर का द्वार है ।

“ क्या कह रहा है मित्र ? ले मद्य पी । ” और चषक पीकर उसने कहा - “ क्या मेरी बात पर अविश्वास करते हो ? ”

“ विश्वास नहीं होता मित्र! तू झूठ बोलता है । ”

“ तो दांव बंद ! ”

“ मैं सौ दम्म दांव पर लगाता हूं। ”

“ क्या सौ दम्म ? ”उस पुरुष ने आश्चर्य से आंखें फाड़ - फाड़कर सोम को देखा ।

“ पूरे सौ दम्म ”, सोम ने दम्मों से परिपूर्ण थैली निकालकर दिखाते हुए कहा - “ तो अभी दिखा और सौ दम्म ले । ”

“ परन्तु रात है। ”

“ तो क्या हुआ। ”

“ राह अगम्य कानन में है । ”

“ अरे मित्र , यह खड्ग है। फिर मेरे पास बाहर दो बढ़िया अश्व हैं । ”

“ दम्म भी हैं , अश्व भी हैं , तब विलम्ब क्यों ? चल मित्र , अभी । ”

“ तो चल “

दोनों व्यक्ति अड्डे से बाहर आए और अश्व पर चढ़ एक ओर तेजी से बढ़कर अन्धकार में लीन हो गए।

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